लेखनी प्रतियोगिता -10-Dec-2021 समुंदर के जैसे खारी हो गई हूं
🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊ॐ🌊🌊🌊🌊🌊🌊
समुंदर के जैसी खारी हो गई हूं ,
माँ बाबा का घर छोड़ चली--
हो गई सुहागन नारी हो गई हूं,
बिताए लम्हे जीवन में सुख दुख के--
सुख से बहुत खुशियां मिली, दुख से बहुत अनुभव हुए-
अनुभवों को समझते समझते, खारी हो गई हूं,
मैंने निभाई सज्जनता, रिश्ते में हर एक शख्स से--
क्या रिश्ते थे वह सज्जन, पूछती हूं मैं अपने अक्ससे
कांटे भरे इस जीवन में, एक सबक यही सीखा है,
मैंने हर शख्स को यहां रंग बदलते देखा है,
देख रंग बदलती दुनिया को खारी हो गई हूं ,
बदला है अपना स्वरूप--
हां कल नारी थी ,आज खारी नारी हो गई हूं ,
समुंदर के जैसी खारी हो गई हूं,
संगीता वर्मा✍✍
Abhinav ji
13-Dec-2021 12:02 AM
बहुत खूब
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Niraj Pandey
10-Dec-2021 11:55 PM
बहुत खूब
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Raghuveer Sharma
10-Dec-2021 11:47 PM
bahut acche
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